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Sunday, February 17, 2013

औरत

औरत 

खुदा का नक्शा औरत, लाजवाव,बेमिशाल,बेहिसाब  ;
अदायें,नखरे,नज़ाकत,ज़लवा,किसी को रूप का शबाव .

जग़ मे भेजा तितलियों को रस,रंग,माधुर्य से भरा नकाव,
कत्लेआम मचाये बिन हथियार,दिखाये झूटे-सच्चे ख्वाब,

दिमाग पर नशा सा ,मन भ्रमित सा,दिल का नहीं जवाब,
उम्र का तक़ाज़ा,बिन उम्र के लिहाज़,आदतन जैसी शराब;

कुछको शौख़, कुछ की बेबसी पीना, कुछ पीके बदहवाश,
उनके  ज़िस्मानी  नुमाइश से इमान खोता  होश-हवाश;

नागीन सी बल खाये,नीली आँखों में डुबाये,दिल नादान,
जिसमें जितनी प्यास भड़की,पाने को उतना ही परेशान;

नज़रों से बचे, नज़रें मिलाकर,नज़रें चुराकर करे इशारा,
नज़रों से गिरे,नज़रें उठाये,नज़र से नज़र का खेल सारा;

खुदा तुम्हे नहीं लगता की सृष्टी को चलाने बनाई औरत,
मेरे मोल्ला ! औरत अक्सर कैसे बन जाती है  कयामत,

औरत को क्या कहे जीने का मकसद,या मौत का सामान;
माता,बहन,पत्नी,रिश्तों की बात छोडें,दिखे भोग समाधान;

ईश्वर ने सृष्टी का भार हटाने रची थी शायद औरत की रचना,
कामिनी,कोमल,सहज़,सरल,निर्मल ह्रदय,रस, कृपा-करुना ;

सजन कुमार मुरारका 

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