Powered By Blogger

Thursday, November 15, 2012

"त्रिशूल"......(प्रथम चरण )!!



श्री गुलजार जी की लिखी 'त्रिधारा' ये रचनाए पढ़ी। इस प्रकार की रचना मे तीन चरण होते है। पहले दो चरण एक साथ औए तीसरे चरण से एक नया अर्थ प्राप्त होता है। उनके प्रयास के साथ मुझें भी कुछ लिखने का मन हुवा ।शीर्षक है "त्रिशूल"......(प्रथम चरण )!!

दिल मे बस जाता कोई  जब
नशा इश्क का चढ़ता जब
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
पाँव तब ज़मीन पर नहीं पड़ते
************************
दिन गुज़ारते उम्मीद से ,रातें गुज़रेगी ख्यालों मे
रातें नहीं गुजरती ख्यालों से,इंतज़ार के लम्हों मे

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
उढ़ जाने को दिल चाहता  पंख लगा के
*****************************
चंपा -चमेली सी ख़ुश्बू से रातों को महकाये
मय -भरी आँख से  ,मिलन का संदेश जताये

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सम्भल ले सपेरा, नागीन कंही डसं न जाये
****************************उमड़ पड़ेअम्बर धरती की प्यास बुझाने
माटी भी महक उठी मिलन स्पर्श बताने

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,आया सावन झुमके ;आया सावन झुमके
*********************************
भीख के मिले पकवानों से अच्छी मेहनत की रोटी
वोटों की भीख मांग,फीट हो गई नेताजी की गोटी

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अब पछतायें क्या हो चिड़ियाँ ज़ब चुग गई खेत
************************************
पत्थरों को तराश के बनती हसीन मूरत
दिल को तराश कर सजाई थी तेरी सूरत

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बेवफ़ाई मे खप गईं यादें,जैसे खड़ा ताज़महल
************************************
निर्वाचन हमारे देश मे नाग-पंचमी का त्योहार है
दूध(वोट)हमको इन नागों(नेताओं)को पिलाना होगा
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जान-माल की हिफाज़त ख़ुद को करनी होती है
*********************************
सजन कुमार मुरारका

No comments:

Post a Comment