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Saturday, September 8, 2012

नज्म बनाना है


नज्म बनाना है

अजब सा भरम मेरा, "बचकानी-सी ख़्वाहिश है "
लबों  की   थरथराहट "शब्दों"  में  दोहराना है

माशूक़ की जुल्फों के साये से,
लरज़ते काँपते दिल की धड़कन से,
मुहब्बत की नज़्म लिखने की हसरत,
एहसास के हर लम्हे से, पाना है

जैसे बाँहों में सिमटी कोई लज़्ज़त-
खामोशी से सीने में रंग भर दे,
वैसे ही सहसा,बिन आहट,
किसी ख़ास लम्हे को शब्दों में पिरोना है

प्यार की नज्म मगर जाने-
क्यूँ लाख कोशिश से भी न लिख पाते हैं ?
लगता है फुल पे मंडराती तितली
पकड़ते-पकड़ते उंगली से छुट जाती है

सोच का गुलमोहर सुर्ख़ फूलों को सहेजे तनाह सा सख़्त खड़ा है
ज़िन्दगी के हर लम्हों को दिल की नरमी से भिगोकर नज्म बनाना है

:सजन कुमार मुरारका

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