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Saturday, September 8, 2012

मिलन का परिभाष


मिलन का परिभाष

भोर की लाली छाई,स्वर्णिम आभा का प्रकाश,

ली तुमने अब अंगड़ाई,अधखुली नींद का आभास,

              यह उलझे बालों की लटे, मनमें महके सुवास

              मिलन के मधुरिम पल, चाहत में चातक सी आश

कंपते अधरों में प्रेम-रस की अनबुझी प्यास

तृप्ती से अतृप्त तन में देह-गंध का मदहोश वास

                      झरते पसीनो की बूंदों में सिंगार का उल्लास

                      सिहरीत लज्जावती बेल का सुखद नागपाश

इन्द्र-धनुष सा सतरंगी मिलन का सहवास

झिम-झिम सा बरसता "प्यार" जैसे मधुमास

                       धीमि-धीमि सांसो में तेज आंधी का बिकास

                       तूफान उठा हो जैसे रप्तारों में बिखरे श्वांस

पाने की ज्वाला में सर्वस्व देने का अभिलाष

समर्पण और मिलन का है मौन यह परिभाष

सजन कुमार मुरारका

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