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Friday, July 27, 2012

बेरुखी का दर्द

जब गम का सैलाब मन में
उनेह पाने का जज्बा दिल में
बेरुखी का दर्द बेपनाह सीने में
आँखों के अश्क़  आये नज़रों में
महशुस ना हो तो, न उड़ाये हँसी में
 
यह समंदर,इतना गहरा क्या बताये
झांको तो, तह न दिख पाये
डुबे जो, उभर ना पाये
हर पल, सदियों से नज़र आये
किस तरह हम-बीती दुनिया को बताये

नाउमीद से उनकी दहलीज़ से निकले
रुके जो, उनके कदम अगर चलें
साथ चलने की आश अगर मिले
साथ उनके चलूँ, चाहे जान भी निकले
कदम से कदम अगर मिले

मिल सकते हैं अगर वह देखे ख्वाब
उनकी जिद है या, झूट-मुठ के बर्ताव
कहदे कि मुकद्दर मेरा है ख़राब
पसंद कियों है उनको खिलता गुलाब
मालूम नहीं काँटों से है इसका शवाब

मेरे जज़्बात ग़लत, हर बात ग़लत
उन्हें शायद छू न पाई मेरी चाहत
मौका इजहार का, न होगी शिकायत
उनका रक़्स का अंदाज़ लगे गलत
फिर भी वह सही, तो मुझे ना दें वक़्त

लाख अच्छा, फूल मगर
खुशबु न बिखरे, न लुभाये अगर
तितलियाँ न जाये जिस डगर
खिलें, और मर जायें बेखबर
कब तलक यह दर्द दबाया जिगर

रोशनी उनको मिल जायेगी उधार
मजे से जी लेंगे वह निर्बिकार
उन्हें न है, न होगा सरोकार
खुद को जलाकर,रोशनी को तैयार
समझे नहीं,मिलेगा क्या ऐसा दिलदार

बहस

बहस चली तारों के बीच
चाँद का जीवन कितना आसान
चांदनी के संग रहना
पक्षकाल रंग-रेलीयाँ मनाना
शर्म-हया से फिर छुप जाना
मधुरता से "मामा" कहलाना
बहस चली तारों के बीच
क्या मजा ऐसे जीने में
जी के दिखलायें बीराने में
अनजाना सा लाखों में
गुमनाम सा पहचानो में
आकाश को जगमागने में
टूट जाये, दुआ दिलाने में
बहस चली तारों के बीच
नियमों में न बंधे, न चले
हर डगर, निडर होकर डोले
टिक नहीं पायें अकेले-अकेले
न जीये किसी फ़रमान के तले
क्या गिला,हम अपनी रहा भले
बहस चली तारों के बीच
अकेला चंद्रमा,और सैंकड़ो तारे
खिलते है जब आकाश परे
छाते जगमगाने बिन बिचारे
रोशन चंद्रमा, टिम-टिमाते सारे
पीड़ा पीकर भी रह जाते हैं तारे
बहस चली तारों के बीच
हर अवस्ता में फिर भी जीते
किसी डर से  छुप नहीं जाते
अपने में जीते, अपने से मर जाते
खास कहलाने, पीछे-पीछे नहीं घूमते
आकाश-गंगा में गुमनाम खो जाते

काव्य-कोष का आभार

 :)

आहत हुवा था मन
कोमल ना रहेनेका प्रण
चकित निर्मम प्रहार से
बेतुके क्रूर हमलों से
निष्प्रभ एवं हताश
विस्मय और निराश
आतंकित विरोध में
संकोच हर क्षणों में
आलोचनायें पैनी और क्रूर
लेखनी भी हो जाती मजबूर
पर किंचित अस्मिता बरकरार
जिज्ञासा ही बने जीद के आधार
अनुभूति से शब्द बने
स्वयमेव लय गीत बने
तभी सृजनता के आयाम
अस्मिता से उभरे पैगाम
अनुभव हो रहा है गहरा
संस्कार की अनिवार्य धारा
प्रस्तुति की मेरी सीमायें
"उनकी"शर्तों को कंहाँ तक निभायें
कुछ ललित-कला के अधीकारि
नहीं समझते उपयोगिता हमारी
घोषित कर दिया तुघलकी फरमान
महानो में,हम जैसों का नहीं स्थान
आभारी हूँ, काव्य-कोष से
उनके प्यारऔर ममत्व से
काव्य-माध्यम,प्रश्न - दोनों टेड़े
भाग्य और प्रोत्साहन से जुड़े
उऋण होना न होगा उचित
लय-छंद मेरे इन से ही प्रकाशित
मेरे हर सृजन-क्षणों का सूर्योदय
काव्य- कोष से उत्पन्न मेरा परिचय

शर्मसार हूँ, :(



मेरी बच्ची, शर्मसार हूँ, तेरा गुनाहगार हूँ
पश्च्याताप के आंसूं, अपने को कोस रहा हूँ
मैंने छोड़ी नहीं दुनिया तेरे जीने लायक
तेरी चाहत, कुछ कर दिखाने का सबक
पर दकियानूसी सोच,उदारबादी मुखोटा,
तहस नहस कर,तेरी आरजुओं का गला घोटा
मैं मजबूर था, तू हो गई थी सयानी
रिवाजों का दस्तूर, तेरी शादी थी रचानी
हम मध्यमबर्गीय जिन्हें इज्जत प्यारी
घर की बहूँ,बाहर काम करे असंभव भारी
स्नेह की चादर ओढ़कर,तेरी मासूमियत
प्यार, और स्वप्नों से मेरा था बिस्वाश्घात
कियों की समाजिक दायित्व से मन था बैचेन
बोझ लगने लगी,कानो में खनक रहे थे कंगन
घर से निकला दे दिया,पिघला नहीं निष्टुर मन
परिन्दें को जंजीर में ड़ाल दिया, देकर नया बंधन
रीत की आदिम अवस्था,अजीब सा सवाल
मान- मर्यादा हमारे लिए प्रश्न है बिशाल
इसके भीतर हम बेब्स्थाओं को गरियाते
और वर्तमान के कंधे पर सर रखकर सो जाते
पता नहीं तुम्हारे लिये या मेरे लिये यह बात
एक मौन अंतराल है, या निश्चुप आघात
पर मैं जब भी तुम्हारी तस्वीर देखता हूँ
या जब कभी तुम्हारा चहेरा याद करता हूँ
मुझे महसूस होते है तुम्हारे नयन असहाय
खोज रहें उत्तर,भैया के साथ नहीं दोहराय ?
मेरा किया कसूर था ? साथ ही तो पले ?
उसके लिये  नियम कुछ अलग कैसे निकले ?
तेरी आत्मा की चीख़ों मेरे दरदे-दिल का राज है
मेरी वेवशी, तेरी माफी की मोहताज है

लिखना है.........

लिखना है...........

लिखना है, अपने आप में
अन्दर मन की खिड़की से
झांके दिल के हर कोने में
भीतरी किवाड़ खोलने से
रुके शब्दों को बाहार लाने में
भीतर की ज्वालामुखी से
बिखर जाते सुलगते लावा में
फुट पढ़ते है दर्द शोले से
दबा देते हैं पीढ़ा राखों में
चन्द शब्द के बयानों से
रोशनी कर देते अन्धेरें मे
लिखना है, बहती पवन से
बहके हर शब्द नशे में
मस्त-मस्त चाहत से
किसी के इंतजार में
बीते समय, रुके जो पल से
हंसी, मजाक,ठिठोली मे
प्रीत की अमृत ज्वाला से
लिखना है, उगा कुछ अन्दर में
शब्द फैले पेड़ की टहनी से
समा जाये हर घटनाओं में 
दिखे जिन्दा-लाश इन्सानो से
लायें आक्रोश जन- सैलाब में
पानी जैसे सूखे रेगिस्तान से
लिखना है, नई सोच में
आनेवाले की स्वागत से
जानेवाले  की विदाई में
हर रिश्तों की पहचान से
लिखना है, बिछुढ़ना या विरह से
मिलना,हर घड़ी इन्तज़ार से
मधु मास, निभे उदासी से
जब बौर लगे आमों के पेड़ में
महके जब मन हरसिंगार से
फागुनी पुरबइयां के चलने में
अगन लगे जब सावन के धार से
लिखना है, अंतहीन बातें शुरुआत में

कविता कैसे हो जाती है

कविता कैसे हो जाती है
अजब-गजब सवाल
बेकार- नाकाम लोग
भाबुक या चिंतनसील
समय के साथ वाले
या समय से जो हारे
रफ़्तार जिनके सोच में
पिघलता कुछ अन्दर में
उतार रहा हो शब्दो में
बे-अक्कल,बे- फिजूल
छोटी-छोटी घटनाओं से
बीते हुवे अतीत में
उलझ जाते बिन बात
सपनो की दुनिया में
खोज में लग जाते
हर आनेवाला लम्हा
और आगे का इंतज़ार ?
जैसे सूरज पि‍घलकर
बन गया हो लाल अंगार
दिल जैसे लू-लोहान
शाम का डूबता रबि
मन हुवा सुनहरा-सा
बहे पि‍घला-पि‍घला-सा
कुछ धुँधला धुँधला
कुछ उजला-उजला
चमकते भाव छंदों में
सोच के अंधेरो में
महकाकर सांसों को
चुभती है केवल दिल में
वही डंक मारकर
कविता हो जाती है।
रफ़्तार में शामि‍ल
गर्म सांसों का धुआ
जो उठता चारों ओर
दि‍खता कहां, जो देख पाते
और समझ नहीं पाते
समझ आते ख़याल नये
इन ख़याल को समझे
और कविता हो जाती है

इन्सान का सच ;)



मज़बूरी है साथ रखना
चाहे हो दिखावे के लिये
या छिपाके हो फर्क देखना
एकांत मन के अन्दर
सच और झूट के बीच
मौल-तौल से नापकर
नफे- नुकशान का सौदा
झूट के आगे,सच बे-असर
अकेला रहता नामुराद सदा
सभ्य, सुलझे बिचार में
महान चरित्र की जरुरत
कठोर असहनीय आधार में
मुस्किल हो बचापाना इज्जत
मानते है "सच"अमूल्य सोना
खतरा है बेसुमार, बे-बुनियाद
तभी चाहते हिफाजत से रखना
डर जाते, नहीं कर सकते
सच के आघात बरदास्त
अंजाम हो सकता है रोना
बिकट समस्या, या नुकशान
या किये हुवे पर पश्चाताप
पाप-पुण्य का फ़साना
जानकर नहीं अजमाते
घृणा के भयसे चुप-चाप
कोशिश करके नहीं अपनाते
मुल्यबान आभूशनो की तरह
संजोते है धरोहर दिल में
लोगों की नजर बचाकर
कहीं ग़ुम न हो जाये
अस्तित्व अपने आप का
डर लगता है हरपल
इसलिये करके दिल में कैद
न माने मन, दिमाग अचल
काम चल जाता सच का
नक़ल गहने रूपी झूट से
करामाती झूटी बनावट का
चतुर-चालाक अल्फाज में
और होशियार सजावट से
दोनों का मिटता अन्तराल
फिर सच-झूट का भेद
यह कोई प्रश्न नहीं बिशाल
इन्सान न तढ़पते, न खेद
संजीदा लोंगों की आत्मा
अजमाये, प्रक्रिया अकारण
चरित्र निर्माण का ड्रामा
थोप रहें है द्वन्द घमाशन
लेकर नीती-बोध का नाम
"सच" तो सत्य है "अनमोल"
झूट ही जब निपटा लेते काम
कियों कोई दे  अमृत-बोल
या अनमोल के लगाये  दाम
मधु-रस=झूट, तब अमृत समान

जीने की राह



कुछ भूली बिसरी बातें
कुछ अपनों का दिया हुवा जख्म
याद आते बड़ जाती धड़कन
सम्भलते-सम्भलते सांसें बेदम
कि उमड़ पड़i कालि घटाओं का सावन
और बिजली सी चोंक जाती
तूफान सा हड़कंप,बिचलित है मन
सारी वह पीड़iयें फ़ैल जाती
डोलता मन एकदम,टटोलते- टटोलते
उंगलियाँ थककर घुप अँधेरे में
सुस्त होकर पोरों तक खोजती
तूफान के बाद का दर्दभरा मंजर
एक एक रोआ उसकी छुअन में
महसुश करता चुभ गया हो खंजर
तब समा जाते एक कोशिश में
रुकेगी जब आंधी, थमेगा जब तूफान
निकल पड़ेंगे नये सफ़र में
और तय करेंगे उन दूरियों को
जो उम्रके इस पड़iव तक पसरे
अपने बेमानी सी तलाश में
मान-अभिमान, सभी अंतर बिखरे
क्योंकर  इस दुनिया में जो सहे
साबित हो चूका सिधान्तों में
वही रहे,चाहे बिजली की रोशनी से
वर्ना तो बस बादल से झर जायेंगे
यादों के घावों को बनाकर नाशुर
न होगा कुछ , दर्द में बस मिट जायेंगे

सोचता हूँ लिखूँ

तेरी मेरी राहें,जिसकी याद हमें है आती
हम ना होंगे,कोई बात नज़र नहीं आती
मैं ख़्वाहिशमंद हूँ,हर तारे का एक तारा साथी
मैं अकेला मेरा मन अकेला,जज़्बा-ओ-अहसास बाकी
तुम हो भी और नहीं भी यह प्यार की हक़ीक़त सखी
हैरान हूँ मैं दर पे नामाबर को पा कर
ग़मे-हयात को मैनें लफ़्ज़ों में पिरोया है
कल जाने क्या होगा, इस बेक़रारी में खोये हैं
मैं बीत रहा हूँ प्रतिपल, मेरा जीवन बीत रहा है
अब ये वहम दिल में और पल नहीं सकता
तुम्हारे हाथों की छुअन मैं हर पल चाहता
देखो, तुम ज़िद ना करो दोस्त कच्चे कान के
नहीं चाहिए ऐसा प्यार "निस्तब्ध" जीवन से
ओ बंजारे दिल आओ चलें अब घर अपने
आज मेरा मन उदास है मेरे गीतों की गलियों में
दुश्मन है क्या ऐ हवा जी सकने का आधार
ज़िन्दगी मेरे साथ-साथ चलना
अब मैंने पर खोल लिए हैं!
थामोगी या छोड़ोगी, मेरा हाथ ज़िन्दगी
कुछ पंछी ऐसे होते हैं जैसे पिंजरा और मैं,
सूरज और मैं, तुम क्षितिज बनो तो बनो
कर तुम्हारा पाने को, जाने क्या करना होगा
रात से सुबह तक मैं तुमको याद करूँगा
मैनें एक परी को मित्र बनाया
आपके सीधे पल्ले में ये दिल अटक गया
इक खिड़की की याद, गुच्छा लाल फूलों का
कल रात जब मेरी तुमसे बात हुई
तुम कल्पना साकार लगती
तुम बैठी ऐसी लगती हो अभिव्यक्ति
मन मरूस्थली,.याद बहार की आती
ये सावन के मेघ ,सावन गीत,बस इक बार
गरज तो रहे हो नभ, पर बरसोगे कब फुहार
बिना तुम्हारे दीवाली फिर क्या तोहार
प्रयत्न हम तुम्हे अपने दिल में रखेंगें
आओ ज़िन्दगी एक बार गले मिल लें
आहत मन, विकृत शरीर दुख को तेरा दर याद रहे
मुझे कुन्दन बनने की चाह तुम हिम का एक कण
किसी ख़ामोश शाम को वो एक पल आया था
सोचता हूँ इस ही पर रोज़ इक कविता लिखूँ

ज़िन्दगी की श्याम है

ज़िन्दगी की श्याम है
डूबते सूरज जैसे
भोर की सुनहरी लाली
दोपहर का तेज प्रकाश
एक-एक कर विदा हो गए
छा रही कालिमा धीरे धीरे
बंद होने को है जीबन-शाला
नाकामी और दुःख के जाम
पीने को मजबूर हर प्याला
मजबूर रहता मन हर पल
दुःख है की झलक जाते
गम-ऐ-दर्द और नशा
टूटे हुवे प्यालों में हाला
पीने को बेबस आता मधुशाला
सहा था कई… कई बार
जो अब हिस्सा है जीने के
हर बात से वाकिफ़ मन ने
कितनी ही बार सहलाया
वही टूटे जाम अब आंसुओं से भरे
समय की धर में उपेक्षित-सा पढ़े
अब कोई रास्ता शेस नहीं
हर तरफ़ केवल ख़ामोशी
उम्मीदों की रोशनी भी नहीं
अब हर तरफ़ अंधेरा लाचारी
बस जाने की तैयारी है
ग़मों को सहज कर रखते-रखते
ज़िन्दगी की श्याम हो गई
हैरत है कि यह ख़ुद भी जानता नहीं
जो बहार दिखता है, वह अन्दर नहीं
कहते है कि मैं होता हूँ,लेकिन नहीं होता
कहते है कि मैं नहीं हूँ,लेकिन ज़रूर होता
सवाल तो बहुत, पर उत्तर न पा सका
बन के तमाशा रह गया बेवस हकाबका

जियो जी भर के,

यह अंत हीन सवाल
मचाये गहरा बवाल
जीना-मरना क्या है
आनेवाला चला जाता
लोट के कब आता ?
यादें भर रह जाती
इतिहास की पाती
बाकी रहता चरित्र बिशेष
यादों के यह अबशेष
मृत्यु अगर प्रश्न जीवन का
ज़िंदगी उत्तर है जीने का
जियो जी भर के,
फिर डर क्या मरने का

प्यार का इशारा

निशा मिलन भोर का  उजियारा
चिल मिलाती धुप में अँधियारा
सुबह खोजे दिल चाँद- तारा
मन में गहरा प्यार का उजारा
नदियों से मिले जैसे किनारा
कोमल शीतल हाथों ने दुलारा
सासों की महक ने संवारा
निर्मल पवन सा स्पर्श सारा
मीठी मीठी तकरार का सहारा
सपनों में भी हरदम वही नजारा
उलझे उलझे लटों का इशारा
दिल की चुभन, दर्द प्यारा प्यारा
मूक अधरों का सहारा
नयनों से बहे अश्रुं धारा
धडकनों में दिल बेसहारा
यह ही तो है प्यार का इशारा

जीवनदायी



जग-मंडल में हवा बिचराती
बन के मंद, स्पर्श से सहलाती
बन के सर्द, कैसे कैसे ठिठुराती
बन के तप्त, बदन झुलसाती
बन के आंधी, विनाश कराती
कंहा कंहा से वह गुजर जाती
क्या क्या सन्देश ले आती
पहाड़ों तक से लड़ जाती
बन-बदीयों में बवंडर मचाती
नदीयों-सागर में तूफान उठाती
हिम-शीलायों से भी लिपटाती
हर मंजर को आसानी से हराती
ख़ुद की रंगत से नहीं भरमाती
बर्षा के आधार मेघ को बरसाती
खेत-खलिहान में फसल उगती
कोई दर्द हो यह नहीं घबराती
बे-रोक टोक अग्नि में समाती
छटपटा कर पिछड़ नहीं जाती
किश्तियाँ-नावों को गति दिलाती
पानी की सहायक बन बाढ़ फैलाती
बगिया में बहक सुगंध महकाती
सूरज संग मिलन, अगन लहराती
सावन में प्रवासी धार बर्षाती
गीत मेघ मल्लाहर के पहुचांति
सुख दुःख के कारन बतलाती
अंत है जीवन जब रुक जाती
गति में है जीवन अपने में दर्शाती
तभी तो यह जीबनदायी कहलाती

जीयें कैसे ? :-[ :-\



जीना-मरना क्या है
आनेवाला चला जाता
लोट के कब आता ?
यादें भर रह जाती
इतिहास की पाती
बाकी रहता चरित्र बिशेष
यादों के यह अबशेष
मृत्यु अगर प्रश्न जीवन का
ज़िंदगी उत्तर है जीने का
जियो जी भर के,
सुबह होती निशा शेष
डूबा सूरज, चन्द्रमा का प्रबेश
जीओ जी भर के
यह तो है आने जाने का खेल
चंद लम्हे खुशीके
तमाम उम्र के गम सहले
अफ़सोस क्या मरने का
डरकर जीये जिन्दगी
यह भी है कोई जीना
फिर डर क्या मरने का
जिसने मौत को साध लिया
मौत करेगी बन्दगी
जीओ फिर तान के सीना
यह अंत हीन सवाल
मचाये बिन-कारन बवाल

मन की आवाज



कभी कभी सपने में
सुनाई देने वाली बातें
वह चीख,वह आवाजें
चोंकर कर,  जाग कर
खोजने लगता हूँ- अपनेमे,
अपना ही वजूद बाहर
अंधेरी रातोमें, अंधेरोमें
सुनाई देती है वह आवाज़
अक्सर किसी के तकलीफ में
असहाय,लाचार, वेबस वक़्त पर
मैं चुपचाप कुछ भी बहाने से
खोजने लगता रास्ता हटने दूर
मेरी संवेदनाओं को मारकर
उनकी पीड़ा भरी आँखों से बेखबर
गहरे अंधेरे दर्द की राहों में
रुदन के सागर में धकेल दिया
जाने-अनजाने, अंजाम से बेखबर
वही आवाज गहरी बेदना मैं
प्रतिध्वनि होकर, घुल मिलकर
आजाती अक्सर फिर रातोंमें
झंकृत करती, घायल करती
छटपटाहट से लगता तब घबराने
जाग जाता हूँ वापस जब मैं
मुझे लगता है वो आवाज़
मेरा भ्रम है,मेरा किया सही था
मन शायेद अघोषित सजा पाने
कतई तैयार न था अपने अंदर,
भागता दूर उस मौन गुहार से
पर कब तब्दील हो जाती चीखें
मेरी ही आवाज़ में,बंद कमरे में
पता नहीं दिखे सपने बनकर
और महसूस सिर्फ मन ही मन में

इशारा आशिकी का

छंद रचे संदर अति भाबुक सा......
इशारा है आशिकी का
आँखों में मुहब्बत की कहानी ,
याद तो हर साँस में आनी
शुरुआत और अन्त प्रेम का
बिरह और मिलन सन्देश का
छबि घुमे नयनों में प्रियतम की
दिन सुना-सुना, रात भी बेगानी
खुले नयनों में स्वप्नों सा
भ्रमित मन चाँद चकौर सा
खोजे चांदनी, आंगन तारों का
यह ही तो इशारा है आशिकी का

अब आयेगा लुफ्त जीने में

ये और कुछ नहीं फ़क़त उम्मीद के एहसास सारे
वजह बने ज़िन्दगी के लिये ख़्वाब प्यारे

हाथ में मेंहँदी उनके-सुर्ख लहू से लिखा फरमान
शायद हैं  जीने का पैगाम, या मौत का सामान

ज़ख्म दर ज़ख्म फिर भी आश मन में
यह दर्द ही  तो है बाकी, अब आयेगा लुफ्त जीने में

यादें

निश्चल पल में सचल नयनो के हलचल
सचल पल में निश्चल नयनो के हलचल
अन्दर निश्चुप,बाहर कितना कोलाहल
बाहर निश्चुप, अन्दर कितना कोलाहल
वो तुम थीं, जो मुझको सदा टोकतीं
“मेरा दिल है पत्थर का ” कह रूठतीं ,
कहा ठीक तुमने, मेरा दिल है पत्थर का,
तुम्हरी यादें बन गई लकीरें, ना बुझी ना मिटीं,
इतने अरसों के बाद,पत्थर सी दिल में सटी

मुझे रोने दो सुख से

मुझे रोने दो सुख से दुःख मे, दुःख से सुख में
हर एक जज्वात को रहने दो, साथ दिल में
मजा जो हंसने में, मज़ा नहीं उतना रोने में
फिर भी दोनों के लिये घर बनाया दिल में .
इतनी बड़ी दुनिया,छोटे से दिल में समाई
छोटे से दिल में दर्द के समुन्दर है कई
मान-अपमान के अभिमान से डर नहीं
गोते लगाने का उन्ही में सुख है सही

जीवन

जिंदगी के रंग कई.. पड़ाव कई
गुजरती है ज़िन्दगी मोढ़ कई
कभी तेज, कभी मद्धम भई
पल ऐसा भी पल आता
जब अध्याय बदल जाता
जीवन से उस जीवन का
फासला पल में तय हो जाता
और मन अटका रह जाता
बीच में कहीं अपना क्षितिज तलाशने
इस पार से उस पार जाने..........
भावों का संसार वाक्यांशों से नहीं बनता...
 वंही तो जिंदगी है जो ज़िंदादिल होता

कविता कैसे हो जाती है,

कविता कैसे हो जाती है,
रफ़्तार जिनके सोच में, पिघलता कुछ अन्दर में
उतार रहा हो शब्दो में- बे-अक्कल,बे- फिजूल
छोटी-छोटी घटनाओं से बीते हुवे अतीत में
उलझ जाते बिन बात सपनो की दुनिया में
और आगे का इंतज़ार ?
जैसे सूरज पि‍घलकर बन गया हो लाल अंगार
दिल जैसे लू-लोहान शाम का डूबता रबि
मन हुवा सुनहरा-सा बहे पि‍घला-पि‍घला-सा
कुछ धुँधला धुँधला कुछ उजला-उजला
चमकते भाव छंदों में सोच के अंधेरो में
महकाकर सांसों को चुभती है केवल दिल में
वही डंक मारकर कविता हो जाती है।
रफ़्तार में शामि‍ल गर्म सांसों का धुआ
जो उठता चारों पर दि‍खता कहां, जो देख पाते
और समझ पाते, उन्हें ही आते ख़याल नये
इन ख़याल को समझे और कविता हो जाती है

दिल ढूँढे क्या

किंचित अस्मिता या जिज्ञासा ही बने  आधार
अनुभूति से शब्द बने,स्वयमेव लय गीत बने
तभी सृजनता के आयाम  से उभरे पैगाम
अनुभव हो रहा है गहरा, संस्कार की अनिवार्य धारा
इस उलझन मे फंसा हुआ था क्या करना कुछ सूझे नहीं ….
हरदम दिल उदास सा रहता ढूँढे क्या था जानूँ नहीं ...

प्यार तुम्हारा पाने को कुछ गीत लिखूँ

प्यार तुम्हारा पाने को, जाने क्या करना होगा
रात से सुबह तक मैं तुमको याद करूँगा
तुम क्षितिज बनो तो बनो सूरज मैं बनुगां
कुछ पंछी रहना चाहे जैसे बंद पिंजरे में
आओ ज़िन्दगी एक बार फिर गले मिल लें
..?किसी ख़ामोश शाम को वो एक पल आया था
आहत मन, विकृत शरीर दुख को तेरा दर याद रहे
मुझे कुन्दन बनने की चाह, तुम हिम का एक कण

सोचता हूँ इस ही पर रोज़ कुछ गीत लिखूँ

सुंदर सा अहसास है ये.....

अकेला चंद्रमा,और सैंकड़ो तारे
खिलते है जब आकाश परे
छाते जगमगाते गुमसुम  सारे
रोशन चंद्रमा, टिम-टिमाते बिचारे
पीड़ा पीकर भी रह जाते हैं तारे
बहस चली तारों के बीच
“चाँद के ही क्यों पीछे तुम,
तारे भी तो सुंदर हैं …..
उनपर क्यूँ नही लिखते तुम, ”
यही बात क्या भूले हम
इतनी सुंदर बात भला,
कलम उठाओ घर जाकर
कविता में इसको ढालो,
सुंदर सा अहसास है ये.....

स्पर्श

यह स्पर्श न अब वो स्पर्श रहा,
यह स्पर्श न अब कुछ स्पर्श रहा …
सच है कवी आपने सच कहा
जीवन की आपाधापी का यह सच रहा...
स्पर्श "जीने का" उस स्पर्श में कंहा
उस "स्पर्श" में ही थी "जीने" की चाह
दोनों "स्पर्श" इस जीवन की है राह
यह स्पर्श  है तब भी तो वो स्पर्श रहा,

हुस्न

हुस्न से बढकर नशे का  न कोई मयखाना,
उड़ गए होश, पर चाहत का नहीं भरा पैमाना
होश-में हुवे मदहोश पर नशे से भरा नहीं मन
तेरे मीठे होटों को पीने को करूँ कितना जतन
टूटे हुवे प्यालों में हाला,पीने को बेबस आता मधुशाला
तेरी जुल्फें,गालों की लाली,होटों का मधुमय प्याला
पीया था कई…कई बार,हुआ नहीं पीने का नशा कम,
जो अब हिस्सा है जीने का पर प्यास अभी हुई कंहा ख़तम
कितनी बार दिल को सहलाया, यांदों के जाम अब आंसुओं से भरे
अभी भी कुछ शेस नहीं, समय की धारा मे जीयें तेरे हुस्न के सहारे
पीकर डगमगाना जरूरी था जीने के लिए,
अब डगमगाता रहता पीने के लिए”.
इसलिए पीने की आदत बुरी जीने के लिए
डगमगाओ मत,ना जरूरी मय जीने के लिए
जिन्दगी ही सुख है, पीना है जीने के लिए ….!
आपके छंद सरिता पीकर मन डगमगाया, पर था सम्हलना
कुछ बताने, या समझने-बिन पीये जाने कैसे होता है डगमगाना
“पी लिया करते हैं जीने की तमन्ना में कभी कभी
डगमगाना भी जरूरी है, सम्हलने के लिए कभी कभी

भगवान बनाम इंसान

भगवान बनाम इंसान

इंसानों के भगवान
दिखते हैं उनकी कल्पनायों से
जीते हैं उनकी श्रद्धा-बिश्वास से
इंसानों के भगवान
सर्वांग -पावन-प्रवीण सुन्दर से
जनम-मरण-रहित सन्तुष्ट से
इंसानों के भगवान
बिवेचक-पालनहार-पुण्यात्मा से
दासानुदास भाव, तुष्ट गुणगान से
इंसानों के भगवान
भगवान की हर रचना इंसानों से
तभी तो-"भगवान" बने इंसानों से
परन्तु.....................!!
भगवान के इन्सान
दिखते है जीते-जागते पर मृत से
जीते-जिन्दगी रंजिश,भेद-भाव से
भगवान के इन्सान
सर्वांग-बनावटी-रूप मे, कुरूप से
मरण मजबूर, जन्मे भी असन्तुष्ट से
भगवान के इन्सान
अबिवेचक,स्वार्थ अपार,कपट- आत्मा से
ऊँचे-अहम् भाव, तुष्ट झूटे गुणगान से
भगवान के इन्सान
इंसानों की हर रचना भगवान से
तभी तो-"इन्सान" बने भगवान से
पर हमें जानना है :--------
इन्सान का है भगवान ?
भगवान का है इन्सान ?........
जब की......
भगवान बनाये हर इन्सान को
बताये पुण्य की राह "उनहे" पाने को
और...?
इन्सान बन खुद आये धरा पे
अपना सच दिखाये इंसानों से

सजन कुमार मुरारका