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Friday, March 16, 2012

कैसी होती है कबिता

कैसी होती है कबिता
वह जाये जिसमे छंदों की सरिता
भावों की लालिमा, दुखों की गीता
स्वप्नों के बादल, बिरह की बयथा
अनबूझी पहेलियाँ, सुलझी हुई कथा
ऐसी ही होती है कबिता
जिसमे लिखी सारी बाते
मन को भाये, बरबस हंसी आये
साथ लेकर रुलाई, सोच बिबश्ताए
आंखे बरबस भर आये
ऐसी ही होती है कबिता
एकाकीपन की छटपटाहट,
ममता भरे शब्दों की ललक
बंद आँखों से दुनिया देखना
खुली आँखों से स्वप्नों मैं खोजना
पास रहकर भी दूर हो जाना
दूर रहकर भी हर पल साथ रहना
ऐसी ही होती है कबिता
जंहा छंद स्तब्द हो जाये
जो है लेखक की मनोब्य्था
यह है सच्चे भावों की रचयिता
ऐसे लिखी जाती मन से छंदों की गीता
:- सजन कुमार मुरारका

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