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Sunday, December 9, 2012

शब्द सक्रिय हैं: सुनना केवल तुम

शब्द सक्रिय हैं: सुनना केवल तुम

तेरा प्यार...

रह गया मेरे पास...
तेरा प्यार, तेरी तकरार
बदन की खुशबु,
बालों की महक
अनबोले लम्बे कथन
अनचाही चहक
वह रुदन
कोशीश हँसने की
कुछ सौदेबजी
लम्बी खामोशी
बातें तन्हाई की
रातों की मस्ती
ढल था हुआ आंचल
तेज सांसों की
सीने पर हलचल
बिन सावन बरसे बादल
रह गया मेरे पास...
तेरा प्यार, तेरी तकरार

:-सजन कुमार मुरारका

Sunday, December 2, 2012

तुम एक पत्नी हो !!?

तुम एक पत्नी हो !!?
कभी एकांत के क्षण मे,
निश्चुप, परिवेश मे,
गहराई से,शांती से,
सोचता हूँ :-
जीवन भर साथ देने;
की थी प्रतिज्ञा,
दुःख सुख साथ निभाने,
पर तुम !!
हरदम डरी सी,
शरमाई सी,
अपने आँचल में,
छिपाती सब बातें,
और अपनी गृहस्थी संभाले;
बन गई सब की दासी |
मूर्खा, सोच नहीं पायी,
परम्पराएं,, रीति,रिवाज;
इन्हें सत्य समझ !
जान ही नहीं पायी कि...
जिस बंधन में बंध कर,
जो सहती हो -
एक तरफ़ा निभाके,
अपने को सौभाग्यशाली,
समझने मे,
तुम्हारी बड़ी भुल है |
क्योंकि हर नियम,
तुम पर लागु थे,!
मैं एक पुरुष,
पुरुष-प्रधान व्यवस्था मे,
फूलों का अधिकारी!
काँटों कि चुभन से बचता,
खुश्बू से मदहोश;
शायद ही तुम्हारी पीड़ा समझता !|!
और जिस दिन ...
मैंने यह दुःख समझा,
चुभने लगे कांटे से |
लेकिन ..ऐसा कभी हो ना पाया ...
अनुभूति होने के बाद भी,
खुले मन से,
अभिव्यक्त कर पाने मे,
असमर्थ रहा |
फ़ैला था मेरा संसार दूर तक,
उस अवस्था मे,
संकोच और झूटे अभिमान से;
चुप-चाप देखता,
मन मे थे सपने अनेक,
और उन सपनों को,
कई कई प्रकार से,
कविता मे छुपाकर;
मैं कहता:-
विवेक दंशन से,
तुम्हारे सोने के बाद,
कविता का सहारे,
और मैं...सोचता हूँ !
तुमने पड़ा होगा मुझे,
मेरी कविताओं के जरिये,
अहम या पुरुष्वत-बोध मे;
अब कलेजे से,
तुम्हारी पीड़ा की गठरी लगाये ,
तुम्हारी नज़र से बचकर ,
आज उम्र के इस दौर पर !
मैं समझ पाया;
मै ने बस लेना ही जाना,
लेने में भोगा सुख,
क्योंकि तुम एक पत्नी थी !
और मैं पति |
जिसके कारण तुम सौभाग्यवती,
सीता जैसी पतिव्रता,
मर्यदा मे रहने वाली स्त्री!
और मैं पति | सिर्फ़ पति |

सजन कुमार मुरारका

" पत्नी और कविता -कैसे साथ"

" पत्नी और कविता -कैसे साथ"
दोनो के प्रति है आसक्ती अति;
महानता नहीं,  है मेरी बिपत्ती !
किसी से तो एक नहीं सम्हलती,
हमारे गले तो दो-दो  आ पड़ी  ;D


लाज कैसे बचाये,दिमाग मे न आये,
एक साथ दो नावों की करली सवारी !
पत्नी जरूरत हमारी,कविता मन भाये;
साप-छछुंदर सी हालात हो गई  हमारी  ;)


कहते हम"पत्नी का साया है भारी"
जब सो जाती,तब कविता की बारी ;
पत्नी न देगी तो कौन देगा रोटी ?
पत्नी कहती कविता नहीं देगी रोटी !
;D

आसमान से गिरा,खज़ूर मे लटका !
धोबी का कुत्ता,न घर का-न घाट का |
बीबी और बाहर कविता के बीच :
फंस गये"सजन"दो पाटन के नीच !
:D

जंहा साबुत बचा न कोय,
अब  पछताये क्या होय !
यह दिल की लगी,दिल्लगी हों गई,
शौख-शौखमे अब आदत सी हो गई| :-[

कर सकते,गर आपका उपाय,
तो रहते सुखी,समझ तो आय!
घर मे बीबी और बाहर कविता,
गुलछर्रे उड़ाते, पता न चलता : ::)


छुपाये "कस्तुरी" दिल के अन्दर ;
"मृग"भ्रम मे,असलियत से बेखबर,
खुशबु फ़ैल जाती,छुपाये न छुपती ;
कस्तुरी ही मौत का कारण होती | ???


बात दुजी "जल्दी से सौतन नहीं सुहाती"
घर मे बीबी और बाहर कविता के पति,
महंगाई के ज़माने मे दो को कैसे पाले !
गुलछर्रे भी उड़ायें, पत्नी को भी सम्भाले | ???


बन्धुवर,अब सोच,क्यों करते यह उपाय;
दो-तलवार का डर,फिरभी मन को भाये,
हिम्मत कर,दोनों को साथ-साथ रखते !
पत्नी से प्यार,तभी गहरी रात मे लिखते !! :-*

पत्नी चाहती है रात का वक्त मेरा
कविता के लिये वक्त का बखेड़ा
पत्नी सोने तक रात का वक्त उसका
कविता का पुरा वक्त शेष रात का  ?
  >:(

सजन कुमार मुरारका

मेरी आप -बीती

मेरी आप -बीती

गुस्से मे लाल,
टमाटर जैसे गाल;
पत्नी बोली झुंझलाकर,
शर्म नहीं आती,
रात-रात ज़ागकर,
क्या-कया उठ-पटांग-
लिखते हो ?
कोई पडता भी नहीं!
खुद लिख,खुद खुश,
क्यों घरवालों को;
परेशान करते हो ?
इतना वक़्त,
इतनी लगन,
और काम मे देते ;
तो,दो पैसे घर मे आते!
कम से कम,
हम इज्जत से जीते।
जीना दुर्भर हो गया,
आस-पड़ोस की ;
औरतें जब करे सवाल!
हो जाते कान लाल।
कहती "तम्हारे"
"यह" क्या करते,
शर्म से गड़ जाती ।
सकुचाते कहती,
"कविता" करते !!
फिर भी वे दोहराती,
काम की बात बताओ?
कौशीश कर हार जाती ;
समझा नहीं पाती ।
तुम क्या काम करते हो ?
टिप्पणी मे हाय,
यों सुनने को पाये,
"बेकार" है !
"बीमार " निठ्ला"!!
काम का न काज़ का,
सो सेर अनाज़ का !!!
राम दुहाई ;
हम गहरी सोच मे,
क्या करे, कया ना करे!
इसी उधेड़वन मे,
लिख डाला ,
संदेश उनका ।
कहते हैं लोग,
हर महान पुरुष के,
पीछे होती कोई नारी !
हम पर पत्नी का ;
साया है भारी ।
लाज़ बचाना है दुस्वारी ,
मुस्किल हुवा ;
तय करना !
पत्नी प्यारी या,
कविता मेरी ।

सजन कुमार मुरारका

नशे की हालत मे, दिल की बात :-

नशे की हालत मे, दिल की बात :-

साकी मयखाने मे,छलकाती शबाब प्यालो मे,
पीलाये,  हो-ता नशा, मजा है नशे मे, पीने मे ।

नशा पीने का , और साकी को है - पिलाने का,
चढ़ती दिलो-दिमाग पे , आलम होता नशे का ।


खुशबू साकी की या प्याले की, महकता मयखाना;
रहती है दिलो दिमाग पे, दोनों की अदा छलकाना !


चमन मे फूल खिले,खुशबु फैलाये,और मुरझा जाते,
बहार आती,  दिल बहलाती,  चली जाती होले-होले!

डूबे चाहे जितना साकी मे,नशे मे, बैठ मयखाने मे,
मजा कभी भी पुरा न होता,हद होती, होश गवाने से ।

नशे  की खुमार, जीने के सामान, पिलाये जब साकी ;
पीके मजा,जीने की खुमार ,पीने की चाहत रहती बाकी।

जो नहीं पीते,उन्हें क्या पता,हम क्यों पीने को बेकरार;
लगता,कैसे जीते ?, जिसने साकी का किया नहीं दीदार!

कहते हमे "वह" तुम पीना छोड दो,जीना सीखो शान से,
कहते हम, पीओ तुम, जीना सीखो शान से, हर गम मे !


पीकर जीये,गम गलत किये ,नहीं,कंहा जी पाते ज़माने मे,
सब नशे मे जीते, उनका नशा रहता अलग-अलग भेष मे ।

किसी को धन का नशा,किसी को ताकत का या सत्ता का;
किसी को रूप का,किसी को मान-मर्यादा का या ज्ञान का !

कोई आधुनिकता मे, कोई रुड़ीवादी परम्पराओं मे जीता,
हर शख्स अपनी -अपनी सोच मे  मशगुल हो के रहता ।

धर्म के नाम पर, इन्सान जब, इन्सानियत का लहु पीता,
रोटी,कपड़ा के नाम पर बह्शी,नगां नचाके मोज़ जो करता!

कितने कितने तरह के नशे हैं,किस किस की बात करूँ !
देख हाल दुनिया का, अच्छा है,मैं मेरे पीने के नशे से मरुँ !!

:( :D :P
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नैतिक घोषणा :- यह कविता किसी को भी पीने के लिये प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से नहीं लिखी गई है ,इसके बावज़ूद कोई अगर पीता है तो उसका पुर्ण उत्तरदायीत्व,पीनेवाले का खुद का होगा।लेखक,काब्यकोश या सम्बन्धित किसी की  कोई जवाबदेही नहीं होगी। यह घोषणा हर गलत काम करने के बाद, उस से  अपना पल्ला झाड़ने का एक संवेधानिक प्रक्रिया के तहत घोषित करने की आधुनिकतम उपाय मात्र है।
रही बात:-"नशे की हालत मे दिल की बात" की सो मैंने "लिखने" के नशे मे लिखी है। अत: किसी को भी मेरी बात से दु:ख पहुँचा हो तो,नशे के आलम मे कहा-सुनी मुवाफ़ करें और मन को साफ़ करें ।
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सजन कुमार मुरारका

यों ही..कुछ.बात या बेबात...(बेरुखी की)!!!

यों ही..कुछ.बात या बेबात...(बेरुखी की)!!!
अफ़साना यह रहता था,हर तरफ़ प्यार का मंज़र दिखा ;
फूलों से लदी हर शाख मे, मोहब्बत का वास्ता  दिखा !

केका गाई,मयूर नाचा,तितली उड़ी,मन मचल जाता था ;
भवंरेसे फिरते,गुन-गुनाते,चाँद-तारे तोड़ने का ज़ज्बा था !

मोहब्बत को रब जाना , प्रेम-प्यार को इबादत माना ;
मुस्कराहट पर मर मिटते,हर लहज़ा था मीठा-सुहाना !

क्या जाने क्या बात हुई,गुँजन सारे, बेज़ूवान हुवे ;
आँखों के नूर,अब उनकी आखों मे ही खटकने लगे !

वह लम्हा खोना नहीं चाहते थे , जब तुम्हारा साथ था ;
यह लम्हा जीना नहीं चाहते हैं ,जब तुम्हारा साथ छुटा !

तुम्हारी आँखें समझती थीं "दर्द", मेरा भी एक रिश्ता ऐसा !
तुम्हारी नफ़रत का दर्द,"दर्द" से मेरा रिश्ता भी एक ऐसा !


लबों पर था नाम तुम्हारा, मेरे लबों पर नाम है तुम्हारा ;
हिफ़ाजत से दिल मे था,हिफ़ाजत से रखने का दिल मेरा !

हर-रोज़ मिलने की आदत से,न मिलने का यह वीरान सा सफ़र,
ख्वाहिश है,अगर ना मिली तो, खत्म कर दूँ ज़िन्दगी का सफ़र !

सजन कुमार मुरारका

यों ही..कुछ... बात या बेबात.......(विडंबना की)!!!

यों ही..कुछ... बात या बेबात.......(विडंबना की)!!!

कई कई शाम उनके नाम हम ने,कई कई पैगाम लिखे थे,
कसमे ,वादे,इज़हार किया था उम्र भर का साथ निभाने;

प्यार जताने, पत्थर पर उनके साथ नाम जोड़कर लिखा था,
आरजू थी हर प्रेमी,सदीयों ही हमारे प्रेम की दास्ताँ देखेगा!!

हमे क्या पता था, बेज़ान पत्थर पर यों क्यों वक्त जाया क़रते,
"दिल"दार "बेदिल हुवे,पत्थर पर फिर लिखा था " प्यार मे";


पत्थर से भी शक्त, कौशीश हमने की थी बेकार मे,
पत्थर पर फिर भी लिखा हमने, प्यार के जनून मे;

उमीदों के बादल उड़ गये, हव़ा ने दिशा बदल दी ,
एक "ना" से उन्होंने  पूरी   कहानी ही बदल दी ;

प्यारके हर पल मे पुरी ज़िन्दगानी लिखी थी,
दिल के कागज़ पर उनकी कहानी लिखी थी ;


छोटी सी "ना", उन्होंने नई कहानी लिखली ;
हमने तमाम ज़िन्दगी की परेशानी लिख ली !

सजन कुमार मुरारका

तुम और मैं (प्रेमी )

तुम और मैं (प्रेमी )
तुम
तुम्हारी यादें
प्यार के वादें
लम्बी लम्बी बातें
और
मैं या तुम 
अब जब साथ होते
बढ़ती उम्र
सफ़ेद बाल
के बीच
मोहब्बत खपाते
तुम्हारी सांसें
जिसकी खुशबू
मदहोश करती
अब थोड़े मे
उखड़ जाती
हम घबरा जाते
नीली आँखें
प्यार की प्याली
चश्मे से भी
धुन्द्ली देखते
झरने सी हँसी
निर्झर बहती
गृहस्थी की दलदल में
रुखी-सुकी सी पाते
तुम हो तो
यादें है
पुरानी तस्वीर सी
कभी कभी देखते
अगर न होते
थका-हारा सा
मैं होता
बिस्तर पर
सोते और सोचते
तुम होती तो
क्या होता
कैसे कैसे दिन होते
बिस्तर पर
साथ साथ सोते
थोड़ी सी बातें
फिर झगड़ते
पर दूरी
ना होती
और मैं होता
तुम होते

सजन कुमार मुरारका

यों ही ..कुछ ...बात या बेबात, मिलन की !!

यों ही ..कुछ ...बात या बेबात, मिलन की !!

मिलन की खुमार,चड़े हुवे नशे की सुमार,
नशे की सूरत उतरे पर मिलन की खुमार ?


एतवार अभी बाकी, खुश्बू रह गई मेरे पास;
यह मिलन के बाद का नशा है या एहसास ?


चमन मे खिलते फुल और मुरझा जाते ;
झोंकें हवा के खुश्बू फैलाते और मिट जाते !


कहते बहार आती और फिर चली भी जाती !
मिलन की बहार और खुश्बू मनमे बस जाती ।


तलवार कि तेज़ धार सी नयन की चले  कटार;
अधरों की लाली, समाये लाल ग़ुलाब बेसुमार !


नख स शिख तक, करके प्रिये सोलह श्रृंगार ;
लाख कहो,ना-ना,मन मे है मिलन-इन्तज़ार!

मिलके,ज़ुदा हो गये खुदसे, हुस्न से था प्यार;
दिल ने दिल को कहा,अभी तो बाकी है दीदार !


बिज़ली सी कोंध जाती, अन्धेरी रात के सन्नाटे मे,
हुस्न का "ज़लवा", ज्वालामुखी सा फ़ुटता मन मे !


सजन कुमार मुरारका

यों ही ..कुछ ...बात या बेबात, ऐसे ही !!

यों ही ..कुछ ...बात या बेबात, ऐसे ही !!
wwwwwwwwwwwwwwwww
शाम हुई,दीये जले,तारे भी  धीरे धीरे

परवाने निकले, रोशनी के दीवाने सारे

हुस्न का चढ़ता रंग,बेताबी चहरे के परे

रात ढलती, दूरियां मिटे,दोनों मिट जाते

kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
सूरज की पहचान ,रोशनी लिये घूमता

चाँद का भी कमाल, उधार पर मचलता

दिन मे निकले सूरज, दुश्मनी है रात से

चाँद पागल,लेकर उधार,निकले रात मे
llllllllllllllllllllllllllllllllllllllllllllll
लम्बी जिन्दगी की दुआ जब मुझे मिले

सोच मे भीषण  बवंडर आये होले -होले

जिन्दगी अब कांह जीते,यों ही  काट रहे

जिसे काटना है,उसे फ़िर लम्बा क्यों खींचे

jjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjj
ईश्वर,अल्लाह,जीसस जाने हम उनके सन्तान

हमे कम नहीं समझो, कसम है जगत पिता की

उनसे तुम भी,उनसे हम भी, और सब बाकी भी

वेवकुफ़ी है फिर खून से खून को धोकर मिटाने की

iiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii
वह हमे भूल जाये,यह बात होई नहीं सकती

भुलाने के लिये, हमे याद करना होगा ज़रूरी

तस्वीर मिटाने से पहले, तस्वीर थामनी होगी

वेवफाई बताने से पहले,वफाई जानना है ज़रूरी

nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn
सजन कुमार मुरारका

"सेदोका"..एक नया प्रयास-(भाग-तीन)

  http://www.booksshouldbefree.com/image/detail/Short-Poetry-1.jpg
 
"सेदोका"..एक नया प्रयास-(भाग-तीन)
***********************
सो-सो लफ्ज मे
लुटाया बेसुमार
एक लफ्ज काफी था
दिल की बात
अरमान दिल के
ज़ताने को था प्यार
........................

तेरा मिलन
बदन की खुशबु,
सीने मे  हलचल
सासों  की मस्ती
ढल गया आंचल
बुझाती नहीं प्यास

.............................
दु :ख  के बाद
सुख  का है  सफ़र;
स्वप्न भरी  आरजू
जीने की आश
नादान दिल माने
जीता इसी बहाने

.............................
बरसात मे
बादल अम्बर में
विरह  नयन में
बरसे दोनों
एक मिले धरा से
एक गिरे धरा पे

.............................
ब्याकुल मन
चिन्ता भरा संसार
दुःख करे बेकार
धीरज धर
मत्त का नहीं सार
प्रभु चरण धार 

.............................
विवेक द्वन्द
मन भटक रहा
दिमाग हार जाता
स्वार्थ-लालसा
बेशर्मी का तमाशा
जीवन परिभाषा

..........................
धर्म का सार
वक़्त कैसे बदले,
सुख, दुःख,  जलन-
ख़ुद में मग्न
नाउम्मीद ही मिले;
आ, प्रभु पैर तले

******************
सजन कुमार मुरारका

"सेदोका"..एक नया प्रयास !!!(भाग -दो )

                                                                            
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"सेदोका"..एक नया प्रयास !!!(भाग -दो  )
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बचपन से                                         कालि सी रात
अकेला न्यारा न्यारा                         अमबस्या की बात
नहीं किसी का प्यारा                         मिलन की आश;
सह के आंसू                                      पूनम रात  ,
बीताया जैसे तैसे                               चांदनी का मिलन 

**************                            **************
और रहा अकेला                                चाँद के साथ 
                       
अश्क आँखों से                                   आंसू बहते
दिल मे नस्तर सा                               दिल तो रोता नहीं
चुभता दर्द कोई                                   गम के सागर से
निकल जाता                                      आदत हुई
लाख संभाले दिल                                उजढ़ा आसियाना
दिल मैं समा जाता                               दर्द सा होता नहीं
 
************                        ***********
अब निड़ाल                                         निश्चल प्रेम
अपने से बेहाल,                                   हवा की तरह  है..
मकरी का सा जाल,                              दिखाई नहीं देता
टूटे जो रिश्तें                                        है  एहेसास,
बन गये निराले;                                   कल्पना का आधार
दिल मे फूटे छाले                                 सिर्फ होता विस्वास
 
************                       **************
मैंने स्वीकारा                                         चाहे हट के
जिंदगी सहती है                                     लगना है हट के
यातना के बंधन                                     जो सब हैं करते ,
रिश्तों से हार                                          नहीं करते
सिर्फ घाटे का सौदा                                 हर  खुशियों भूल
भाग्य फल की बात                                 नई राह मे  भटके,

****************                ****************
पथझढ़  मे                                             भरे नयन
पत्तो  की हरियाली                                  भीगे जो मेरा तन
चाहे  अब रिश्तों  मे                               अधरों मे  कंपन
निभाया नहीं                                         बिरही मन
चतुराई से बचे                                       दिल की धढ़कन
प्यार  नहीं उन मे                                  जागे मेरे मे अगन
 

*************                       *************
रिश्तों की नग्मे                                     प्रिया की याद
अविस्वास  की आंखें                              जीने की चाहत मे
कुढ़न वाली बांते                                     चुभ जाती काँटों सी
चाहत टूटी                                              हिम शिला सी
दूरी हमारे बीच                                       रहे परछाई सी
मिटा सगों का प्यार                                हर वक्त दिल मे
 

*************                           **************
सजन कुमार मुरारका

"सेदोका"..एक नया प्रयास !!!(भाग -एक )


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"सेदोका"..एक नया प्रयास !!!(भाग -एक )

हिंदी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में ‘सेदोका’ नव्यतम विधा है। यदि यह कहा जाए कि वर्तमान की सबसे नव्यतम विधा के रूप में स्थान लेता जा रहा है ।
सेदोका 38(अड़तीस )अक्षर में लिखी जाने वाली  कविता है। इसमें "छ " पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में ५ अक्षर, दूसरी में ७ , तीसरी में ७ ,चौथी मे ५ ,पांचवी मे ७ और छठी मे ७ अक्षर रहते हैं। संयुक्त अक्षर को एक अक्षर गिना जाता है।"छ " पंक्तियाँ अलग-अलग होनी चाहिए। और किसी एक ही वाक्य को ५,७,७,५,७,७ के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि छ पूर्ण पंक्तियाँ हों।
(आधार:-  हिन्दी साहित्य काव्य संकलन से लिया गया है ) उदहारण स्वरुप मैंने कुछ प्रयास किया है , इस विधा को को आइये सब मिलकर आगे और बढ़ायें |
सेदोका की प्रत्येक पंक्ति एक साक्षात अनुभव है। कविता के अंतिम पंक्ति तक पहुँचते ही एक पूर्ण बिंब सजीव हो उठता है।लिखते समय यह देखें कि उसे सुनकर ऐसा लगे कि दृश्य उपस्थित हो गया है, प्रतीक पूरी तरह से खुल रहे हैं, बिंब स्पष्ट है।

********************************************************
मन उदास
सिर्फ है  एहसास
भूली बिसरी यादें
आशांये टूटी
बीत गई जवानी
जिंदगी की कहानी

*************
कल गुजरा
हर एक कल मे
खेल आने जाने का
समझो इसे
कल  नहीं आयेगा
आज है ,कल होगा

**************
पड़  लिख वे
काबिल बनने को
घर कों छोढ़ चले,
रोटी के लिये
असहाय -जीवन
स्तब्द है अभिमान

************
तुम्हारे साथ
बिताये हुवे पल
जला रहे हैं मुझे
तुम्हारे बिना
पलक बिछाये हूँ
काटे न कटे पल

***********
पंख चाहिये
देना कोई पैगाम
प्रियतम के नाम
उड़ जाऊंगा
मन में है बिश्वास
पंख अगर होते

************

सजन कुमार मुरारका

शिल्प

 Ajanta Caves in Aurangabad - Maharashtra

शिल्प-

पाषाण शिला मे सजीव शिल्प अत्यन्त निराला;
अजन्ता के मूर्त-रूप मे प्रकट नारी-सौन्दर्य कला,
शिल्पी के अन्तर भाव छेनीसे निखर निखर चला,
चाहत थी या नहीं राजकीय, प्रेमातुर से रूप मिला!
नायिका की सुंदरता,रूप-अपरूप,अंग-अंग मे खिला,
कहे क्या, शब्द पाषाण, मुखरित हो गई पाषाण शिला;

                            जब देखता हूँ नजर भर सासें रुक सी जाती,
                            परी या नदी कोई जैसे चले इतराती-बलखाती;
                            सर से नख,यौवन भार से इठलाती-लज्जाती,
                            अल्लड़पन या चंचल-चित्त से लहरों सी लहराती;
                            यौवनमय,सुन्दर- सलोने देह की छटा बिखराती,
                            कामदेव की कल्पना सी नायिका, सजीव हो जाती!

शेव्त उदर-जल राशि सम, नाभी ऐसी पड़ी जैसे भँवर,
कटि-तट पर नागिन,-केश-लतायें जैसे घटा छाय अम्बर,
कचनार से अधर पर जैसे फूलों का रस गया हो ठहर,
लाली उसमे जैसे रसमय दाने फैलाए फ़ैली हो अनार ;
सीपों मे बंद मोती से नयन, काज़ल से बचे जो नज़र !
नाजुकता भरा स्पर्श,गोरी गोरी बाँहों से करे प्रेम पुकार;

                            दाँतों की सफेदी,धवल शेव्त रंग की दे अनुभूति !
                            घनकेश पिंडली छूता,नागिन कोई सा प्रतिभाति ;
                            उड़ते आँचल,मधु-कलश वक्ष पर,सुध खो जाती ,
                            पतली सी कमर लचके जैसे हवा चली बलखाती ;
                            पैरों के घुंघरू की पैंजनिया लय-मय धुन सूनाती !
                            रूप गर्विता की  सुन्दरता से अप्सरा भी शरमाती |

वस्त्र जो जाय फ़िसल-फ़िसल तंग कंचुकी से,
अंग-अंग की दिखे झलक गुलाब की पंखुडियों जैसे,
नज़र मटकाए,बल खाये,जब देख इतराये पलकों से;
खिली हो कली,सुघन्ध फैलाये, पुष्प बनने की चाह्त से,
इन्द्रधनुष कोई आकर लिपट गया हो गोरी के बदन से;
नख से शिखर तक,जब अंग देखता हूँ तेरा हर नजर से !

                                  नथुनों मे भर गहरे सासों का निशब्द तूफान;
                                  टूट जाता है सब्र,मधु पीने मधुकर है परेशान,
                                  कोमल कपोल,पयोधर वक्ष,कटि सुन्दर सुजान;
                                  उद्भाषित,उन्मिलित,उन्मुक्त मिलन आह्वान!
                                  रती-नायिका,शृंगारिका, कहाँ वस्त्र का ध्यान |
                                  अजन्ता के मूर्त-रूप मे नारी-सौन्दर्य महान !
 


सजन कुमार मुरारका

यौवन ज्वाला





यौवन ज्वाला

लहर अंग-अंग मे,
नव यौवन की,
अठखेली करती लता-सी;
निज तन,निज मन भ्रमाय,
खिले-खिले फूल से,
वसन्त की हरियाली-सी;
हर अदा मे बवार देती फैलाय,
विभोर रास-रंग मे,
भ्रमित चित्त- प्रणय ज्वाला की,
भिन्न भिन्न उमंग से,
विचरे अभिलाषित पंख फैलाय;
मुखर या फिर मौन सी,
आनन्द विभोर मन ही मन मे;
पुलकीत हो बार-बार;
कम्पित अधर मुस्कान मे,
निश्चल नयन मे सपने सजाय;
रूप के मोहिनी जादु से,
प्रणय-गान गुंजन से,
लावण्य, कोमलता से इतराय;
श्रृंगार की मूक दृष्टि मे,
देखे नयन सचल ,
अपल हो दृष्टिमे स्तब्ध सी;
दिगभ्रमित आपने आप ही हो जाये!
छबि प्रियतम की,
ह्रदय मे बाँधकर,
तन की-लता सन्देशीका सी;
प्रथम प्रणय के भाव मे,
कैसे सहज,लज्जित चुपचाप;
विमुख अपने से,
निमेषहीन नयनों से तकाय!
सर्बसुख प्रियतम मे,
प्यार ही सर्वस्व प्रतीत पाय;
बहका-बहका विवेक,
अधीर और भी अस्थिर।
कुल मान-संस्कार निष्फल,निश्प्राय;
देह-मे रति झुलसे,
पंकिल हो चाहे सलिल-
या लघु लगे प्यार मे,
भावों की हर सीमा लाँघ जाय!
सुखद या मनोहर सी ,
व्यर्थ अभिमान से,
विचार-बुद्धी से सोच न पाय ।
शत बार गर्वित प्यार मे,
नभ से बरसती धारा सी,
धरती मे समाने को मचल जाय !

सजन कुमार मुरारका

Thursday, November 15, 2012

गज़ल




प्यार के जख्म से वेवाफाई की हर अदा गज़ल होती है ;
जख्म वह नासूर से टिसते  तो दर्द की गज़ल होती है |

अनकहे जज्ब़ात के हर लफ्जों से प्यार की गज़ल होती है ;
जज्ब़ात मे बह कर एतवार से माशुकी की गज़ल होती है |

जब ख़ुद को भूल जाये कोई तब दिल की गज़ल होती है ;
हर लम्हा याद आये जब कोई तो चाहत की गज़ल होती है |

दिल के  बसे ख़ामोश समन्दर से जज्ब़ात की गज़ल होती है ;
जज्ब़ात जो अरमान बन दिल से उगते तब भी गज़ल होती है |

बेवजह कोई बैठे-बिठाये लब पे याद आये  तो गज़ल होती है ;
और याद सताती  हो पर दूर तलक ना हो तो गज़ल होती है |

छोड़ चला गया हो पर दिल से गये  नहीं  तो गज़ल होती है ;
गौर से सुनने से दिल मे हरदम गुनगुनाते तो गज़ल होती है |



आँखों से जो टपकते अश्क तो बूंद-बूंद से  गज़ल होती है ;
होंटो पर चमचमाती हंसी सितारों से रोशन  गज़ल होती है |

उझडी किस्मत से उम्मीद की राह दिखें तो गज़ल होती है ;
नाउम्मीद की तड़प, किस्मत की बददुआ की  गज़ल होती है |

हर पैमाने पे ज़िन्दगी बोझ लगे तो मायुसी की गज़ल होती है ;
ज़िन्दगी अलग से  ख़ुशनुमा लगे तो ज़िन्दगी की गज़ल होती है |

जाने आगे क्या होगा सोचकर दिल की धड़कन गज़ल होती है ;
हर पल को जो जीये-मरे इस तरह से,और जीयें  तो गज़ल होती है |

सजन कुमार मुरारका

"धन्यवाद का सन्देश "



 
मैं अनजान कैसे तेरी राह मे आया था ,
और न जाने कब तेरे दिल में समाया था,
मेरी राह तो बिराने  की तरफ़ जाती थी!
दोस्त! जाने क्यों तुमने अंगुली थामी थी !
जब भी  ख्याल आये,मैं सोचता रहता था,
कभी किसी समय का याराना या रिश्ता था !!
क्यों शमा बनके मेरी   दुनिया रोशन करता है,
ख़्वाब की मानिंद हर वक़्त  दिमाग में रहता है.
वो बहता  रहता  मेरे जिस्म में ज़ोश  बनकर ;
वो प्रज्वल्लित करता मेरे मन को आग़ बनकर ।
मेरे पास नहीं, हरदम मगर मेरे साथ रहता है |
ये बात सच है फूल सा बगिया को महकता है !
मेरे ग़म का सागर उसके  हौसले से निबाह था ,
निबाहने तो रास्ते में साथ साथ मेरे चला था  ।
मेरी क़मीज़ स्याहियों की कालिख़ से कालि थी |
शाबासी के लफ्ज़ों से उसने धुप सी चमकाई थी ;
मुझे रोशन करने मैं वह किरन-किरन में बिखर था,
मेरे लेखन मे "
उन सब "का "सरयू "सा योग था !!


सजन कुमार मुरारका

उम्र का क्या तक़ाज़ा बहकने से



गजरा सजाया मैं ने मगर;
खुशबू फ़ैली देर तक,
                      हर दिल मे जंवा सा असर ,
                      चाहत जवां होती रही दुर तक ।

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श्रुंगार की बात न बताइये,
उम्र नहीं होती दिल लगाने की,
                     बस एक इशारा भर चाहिये,
                     नशे का आलम नहीं रहता बाकी। 

 ********************************************
पड़ने लगी जो चांदी बालों मे,
तजुर्बे का पैमाना है उम्र का ;
                       अजमाने की मुराद है मन मे ,
                       बची हुवी ख्वाइशे है जताने का।

********************************************
थकेगा शरीर जब काया से,
तब सोचेंगे क्या खोया उम्र मे;
                        याद आएंगे हर पल बीते से,
                        जो गवाये बिन श्रृंगार रातों मे।

********************************************
दिन मे हम यों ही नहीं सोते,
के उम्र बीती हमारी,रातें जगते ;
                           हमे तो लगती थी तब छोटी राते ,
                           तभी अब इस उम्र मे दिन मे सोते !
 
********************************************
लोग सही कहते,इस उम्र मे भी;
बहकते हम गजरे की महेक से,
                             पूछेंगे उनसे जरा,पता तो चले भी,
                             उम्र का क्या तक़ाज़ा बहकने से ।

********************************************
प्यार के इशारे कभी नहीं बदलते,
"
प्यार "का गजरा हमे मदहोश करता;
                   
   हम तो बस प्यार जताने लिख लेते,
                       और वो प्यार का इशारा समझ ही जाता।
 
********************************************
बस इतने मे कैसे खुश हो लूं,
बस चले तो बाते जरा लंबी कर लूं ,
                       आज "
प्यार "की कविता को समझ लूं ,
                       गजरे की महेक से इस दिल को जवां करा लूं।

********************************************
 सजन कुमार मुरारका 

समस्या मे है समाधान

 
गतिशीलता है जीवन का आभास !

समस्या के अस्तित्व के साथ बास;

चलनेवाले से ताप का होत विकास,

ताप रहित जीवन नहीं होता विश्वास!

जीवन-ताप को माने समस्या समान;

शक्ति करती नव निर्माण का समाधान ।

कभी बन जाती विकट,ध्वंस का सामान,

कभी प्रसूत करे नित नये सूत्र बिज्ञान !


प्रेरणस्रोत मूलरूप से होत अन्त-सलिला ,

दोष दूसरों को देते रहते,अन्दर का है रैला;

शरीर-कर्म का सद्पयोग न कोई झमेला,

ताप-शक्ति सहयोग स चले सारा खेला !


सटीक निर्णय की त्वरित शक्ति चाहिये,

समस्या से ताप समाधान की शक्ति बनाइये,

होगा समस्या का निदान निश्चित पाइये;

अपेक्षित ताप-शक्ति समन्वय होने चाहिये ।

जागृति मुख्य भाग है सम्पूर्ण जीवन का !

मन-वचन-कर्म सहज़ आधार परखने का,

स्वप्नावस्था में देखा सत्य होता भ्रम का;

जाग्रति स्वप्नको आभाष कहे मिथ्या का ।

समस्या जीवित अवस्था मे दीर्घ स्वप्न होता,

मन की सुप्त अवस्था से यथार्थ ही प्रतीत होता;

अवचेतन मदारी बन ,चेतन को नाच नाचता,

जिन्दगी को खिलाता खेल,स्वप्नवस्था मे रहता ।

यह प्रमाणिक है विफलता से जों भी घबराये,

प्रयास न कर पूरी तरह हताश,निश्चेष्ट हो जाये!

वास्तव मे माली खुद ही देत है खेत जलाये,

बीज़ बोये, सीचें,समय लगे, फ़सल उपजाये।


सुषुप्त-चेतना मे रहे अहम, अविद्या- विद्यमान-।

समाधिमे वासना सुप्त रहे,लुप्त होने का नहीं प्रमान;

चेतना से चिंतन करे, चैतन्य पूर्ण हो, मिटे अज्ञान!

अनुभव समस्या नष्ट करे,चिंतन देता समाधान !!


**सजन कुमार मुरारका **


उल्लू चड़ लक्ष्मी जी आये !
तुष्ट होती उल्लू जो बनाये ,
उल्लू बनाय धनवान हो जाये,
लक्ष्मी जी का वाहन बताये !!
मुर्ख को उल्लू बताया जाय,
उसी के सहारे लक्ष्मी पाय ,
जो उल्लू किसी को न बनाय,
लक्ष्मी जी किस तरह आय !!!

सजन कुमार मुरारका

पिताजी ने कहा


 
पिताजी ने कहा  
हमेशा सच बोलना,
!!?!!
झूट को सच बनाकर;
अब झूट सच ही लगता !
कोरा सच हज़म नहीं होता,
और मैं सच ही बोलता हूँ |


पिताजी ने कहा
हमेशा ईमानदार रहना,

!!?!!
हर ज़गह है बकरार;
बेईमानी की ईमानदारी !
इमान से पेट नहीं भरता ,
स्वार्थ  के प्रति मैं ईमानदार हूँ |


पिताजी ने कहा
हमेशा न्याय का साथ देना,

!!?!!
अन्याय से चले सरकार;
अन्यायीयों का दामन थामे !
न्याय भरे बज़ार नगां होता ,
अन्याय सहकर न्याय करता  हूँ |

पिताजी ने कहा
इन बातों से सुखी रहोगे देखना,

!!?!!
पिताजी की हर बात हरबार;
क्या जरुरी है सही होना ?
पर सुखी होने के लिये,
मैं उसे किसी भी तरह निभाता हूँ|


(पिता बोले थे-नामक हरीश करमचंदानीजी की कविता से प्रभावित)
सजन कुमार मुरारका

वा रे सरकार तेरा चक्कर-भाग -2



गज़ब लोगों की, अज़ब सरकार;
आमदनी कम,महंगाई की मार;
सस्ते होगें तब उनके सिलेंडर !
सालाना आमदनी हो लाख के अन्दर।


खाली होगी जेबें,मिलगें सस्ते सिलेंडर,
हालात ऐसे,जैसे सांप के मुहं छछुंदर;
सोच समझकर तरकीब बड़ी सुन्दर,
ग़रीब कंहा,वह जो लेगा "नो" सिलिंडर!

चतुराई से उठाये कदम,गरीबी खत्म ;
फिर भी क्यों मचाते शोर हरदम!
औकात नहीं खरीदने की हैं बेशर्म,
तब भी लगे  उन्हें "छ" सिलिंडर कम ।

भूखे नगें लोग "छ"-"नो" के चक्कर मे ,
बदनाम करते सरकार को बेकार मे !
गरीब मरे तो कमी आये गरीबी मे ;
महंगा खरीदें,शक कंहा धनी कहलाने मे !

सजन कुमार मुरारका

खोया हुवा दिल



आज अचानक बहुत दिन बाद,
मुलाकात हो गई;
मेरे खोये हुवे दिल से,
काफ़ी दिन से गुमशुदा था ।

कितनी मिन्नत,कितनी फ़रियाद,
खोजने  की हद हो गई;
पूछा हाल-चाल दिल से,
क्यों इतने अर्सेसे वह मुझ से ज़ुदा था ।

आँखों मे भर पानी,सुनाया संवाद ,
प्यार की इन्तिहां हो गई;
प्यार किसी से हो गया था उसे ,
नासमझ दिल कब उसी मे खो गया था  ।

जर्जर, मासुम से चहरे पर अवसाद,
जीने की तमन्ना खत्म हो गई;
टूटे हुवे दिल को सम्भालु कैसे,
"दिल्लगी" को उसने "दिल की लगी" समझा था ।

समुन्दर की रेत पर लिखा होता बरवाद,
लहरें आई और धो गई;
रेत का दोष इसमे कैसे,
नदानी थी दिल की,ग़लत जगह लिख था।

दिल को वापस लाने की थी कबायद,
अब जरूरत बड़ी हो गई ;
जीने को जी लेते लोग जैसे-तैसे,
पर रेगिस्थान मे वेवकुफ़ पानी खोज रहा था ।

सजन कुमार मुरारका

बोलो जब सोचकर बोलो !!



सुनो भाई साधो,कहते गुणी जन, हमको समझाय;
बोलो वचन मधुर ऐसे; जो मन को शीतल सुहाय,
कभी ना बोलो कड़वे बोल, अंतर्मन को बिंध जाय,
ज़ख़्म लगा तलवार से फिर भी उपचार किया जाय,
बातों के ज़ख़्म का "वैद्य धन्वन्तरि' न कर सके उपाय,
कभी भी  किसी का दिल दियो ना  अकारण दुखाय ,
मन टूटे  एक बार,लाख यत्न करो फिर जुड़ न पाय,
जुड़े भी जो दाग रहे,जीवन भर दिल मे बसा रह जाय ;
सदा मूर्खों ने फ़िज़ूल की बातों से दिया कोहराम मचाय ,
कह गये लोग पुराने,टक्का दे चाहे, उससे पीछा लो छुड़ाय,
ज्ञान की बातें उनके समझ न आय,व्यर्थ समय क्यों गवायें,
जैसे की सच है ,भैंस के आगे वीण बजाय, भैंस बेठी पगुराय ; 
मूर्ख सखा से नहीं होता भला ,बुद्धीमान दुश्मन ही रखा जाय !
मुर्ख सदा दु:ख ही बांटे, बबुल जंहा उगे,संग कांटे उपजाय,
सरसता दे रिश्तों मे, प्रेम प्यार के बोल से जो जीवन बिताय,
कस्ट आये जब भी,  मिल बाटकर ,अपने आप कट जाय !
अपनों का तिरस्कार करे, जो अपने अभिमान मे बोले जाय ,
अहंकारी का विनाश ख़ुद प्रभु ने किया, फिर उसे कोन बचाय ?
अपनों का अपमान से, मन की ज्वाला विवेक को भष्म कर जाय,
पता नहीं कब खोल दें ,अपमानित घर का भेद,विनाश दें  कराय !
बोलो जब भी सोचकर बोलो,मीठा बोलो,दूजा न कोई सरल उपाय,
ज्ञानीजन कहतें; गूंगे के दुश्मन कम होत,क्यों की वह बोल न पाय,
"सजन" ताहे कहे ,ऐसे वचन बोले,जो किसी का दिल ना दुखाय !
*सजन कुमार मुरारका *

हम नहीं पीते यों ही .....!!!?!!!



मुझे शक की निगाहों से ना देखो,मैंने पीना छोड़ दिया,

यों ही आँखें लाल हो गई ज़ालिम, तुम ने जो ज़ख्म दिया ,

मेरी गली आना,देखना ,तेरे नशे ने मुझे  बे-होश कर दिया,

जबसे ज़ुद्दा हुई  तुम,हमने तो मयखाने जाना  छोड़ दिया;

कितने पियें ज़ाम,ह़र नशा,तेरी यादों से कफुर हो लिया |

मेरा रुख मोड़ने की कुरवत मे,तुने मेरा साथ छोड़ दिया,

रहने लगी ख़फा-ख़फा जब से,मयखाना  ही छोड़ दिया,

लबों को सिल के भी, साकी से नज़रें मिलाना छोड़ दिया.

मोहब्बतकी आयतों को सनम,ख़ुदा-ऐ पाक का दर्ज़ा दिया |

फिर भी नजरें न हुई इनायत,हमने ग़म से दामन जोड़ लिया,

तेरी आँखों से नफ़रत का उलहाना,हर बाज़ी को डुबो दिया

शराब की थी नहीं इतनी औकात,तुम ने ही मदहोश कर दिया,

जब से हारी तेरे प्यार की बाज़ी,दिल ने जीना मुहाल कर दिया,

प्यार की तपिश का गुमान ,बेवफाई ने हाल बे-हाल कर दिया |

इतने पर भी जब दिखी बेरुखी,हमने प्यार मे इठलाना छोड़ दिया,

क़सम ख़ुदा की हम पीने के लिये अब  मयखाने जाना छोड़ दिया,

हम तो चले जाते यह सोचकर, कंही,तुमने वहां हमे तलाश किया,

हम पीते नहीं जानम,वक़्त तुम्हारे इन्तज़ार का यों हल्का किया |

नाशा छोडा,तुम छोड़ गई ,सोचते तुम लोटोगी,जो नशा लोटा दिया,

मैं तेरे हुश्न के गरूर से नशा किया,एतराज़ न जाने तूने क्यों किया,

तुझ पर एतवार करके, ग़म का, ज़िन्दगी भर दिल पर ज़ख्म लिया,

ग़म ग़लत करने अगर अब हम पी लेते हैं तो, क्या ग़लत किया ?!!!

*सजन कुमार मुरारका *

त्रिशूल ....(तृतीय चरण ),,,!!!



त्रिशूल ....(तृतीय चरण ),,,!!!

हुश्न के ज़लवे पर इतना न तुम  इतराव 
चमक दो दिन की,वक़्त रहते संभल जाव

...............................................
आईना हुश्ने-जिस्म की खुबशुरती बयां करता है
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
मेरे जज़्बात की कद्र कंहा,हर रोज़ यों ही दम तोड़ते
परवाह भला उन्हें क्यों, वह तो मोहब्बत का कारोबार करते
..........................................................
शायर ही ना होते ग़र इश्क मे बेवफाई का हुनर ना होता
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx

चोट अब भी लगती पर दर्द होता नहीं
चेतना तो मर  गई पर जिस्म मारा नहीं

...............................................................
हुक्मरानों की सियासत ने हमें बाँट रखा है
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
रास्ते का पत्थर,मन्दिर पहुंचा,प्रभु का दर्जा मिला
ठोकर मारने वाले ,आते जाते सज़दा करते,अन्ध-बिस्वास का भला

..........................................................................
धर्म के नित नये ठेकेदार ;लूट रहें दुनिया सारी
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
किसी के दर्द को बांटना हो तो,दिल मे उतर कर देखो
भर के बांहों मे,उसकी आँखों मे खुद की औकात देखो
..........................................................................
दर्द की ग़ज़ल उम्दा होती,दिल की लगन जब लगती
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX

कुछ सोच मे बदलाव चाहिये इन्कलाब के लिये
बर्फ बने दिलों मे ज्वालामुखी सा रिसाव चाहिये

..............................................................
मौनम सन्मति लक्षणम,अत: जो सहे वह मरे
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
अब रिश्तों का मुल्यायन होता  स्वार्थ के बाज़ार मे
बिचित्र गणित,सास-श्वशुर बदल जाते मात-पिता मे

.................................................................
तरक्की के दौर मे प्यार भी व्यापार नज़र आता है
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
सजन कुमार मुरारका

गांधीवाद !!!



।_।_।_।_।_।_।_।_।_।_।_।_।_।_।
गांधी जी के तीन वचन अनमोल;
बुरा न सुन,बुरा न देख,बुरा न बोल,
शायद इन्सानियत हो गई अपने मे लिप्त,
बचने बचाने को बन गया गांधी भक्त ,
और उपदेश को ध्यान से रखता सशक्त |
@@@@@@@@@@@@@@हर तरफ़ आवाज़ है कितनी घनघोर ,
सत्ता के गलियारे मे घूम रहे चोर ;
महंगाई की मार,हाहाकार पुरज़ोर ,
फ़रियाद सुननेवालों मे भी घुसखोर ,
मैं कंहा सुनता यह सारे के सारे शोर !!

@@@@@@@@@@@@@@@जितना भी हो दुराचार, भ्रस्टाचार,
सत्ता का हो दुरउपयोग, दूरव्यवहार ,
नारीयों से चाहे व्येबिचार,बलात्कार ,
बहुवलीयों की सरकार या अत्याचार,
मैं कंहा देखता हूँ,रहता निर्बिकार !!

@@@@@@@@@@@@@@@
संविधान ने दिया जो अधिकार बेमोल;
स्वाधीन भारत मे मन खोलकर बोल,
प्रतिवाद की आवाज़ क्यों हो गई सुप्त ;
रोटी,कपड़ा और मकान का दर्द संतप्त ;
आतुरता मे बोलना बन्ध,शब्द हो गये लुप्त |

@@@@@@@@@@@@@@@
गांधी जी के उपदेश के सब  मोहरे थे बंदर !
क्या हुवा आज़ भी नेता अगर बनाते हमे बंदर |
गांधीजी ने भलाई बताने बंदर को बनाया मोहरा ,
आजके नेता चाहते अपनी भलाई, बनाते मोहरा ;
गांधी के नाम पर दुकान चलाते,झूट का सहारा |

@@@@@@@@@@@@@@@@
जीवन की ह़र बाज़ी मे आम आदमी से  धोखा,
ज़ुल्म का हश्र बुरा, इतिहास का लेखा जोखा ;
बंदर नाच नचानेवालों सुनो विद्रोह दस्तक देगा,
देखो चेतना के नवउदय की झिलमिलाती रेखा !
बोलो तुम्हारे ज़ुल्म का हिसाब और कोन  देगा ?!

_।_।_।_।_।_।_।_।_।_।_।_।_।_।_।_।_।_।
सजन कुमार मुरारका

"त्रिशूल"......(द्वितीय चरण)..!!!



"त्रिशूल"......(द्वितीय चरण)..!!!

क़ुदरत का बड़ा अज़ुबा,हर इन्सान को जन्मती औरत
इन्सान का बड़ा अज़ुबा,इन्सानों के हाथ मरती औरत
............................................................
कुदरत भी अचरज़ मे- इन्सान बनाया,बन गया शैतान
***********************************

खंज़र से लगा ज़ख्म फिर भी भर जाता
ज़ुबां से लगा ज़ख़्म कभी भर नहीं पाता
.............................................................
बोलो जब भी, बोलो मीठा बोल
***********************************

मुल्क की हिफाज़त थी जिन के नाम
उन्हों ने ही किया इसका काम तमाम
..............................................................
चोर  के हाथों मे दिया चाबी थमाय
***********************************

ख़ुशी के लम्हों मे आंसू निकल आते
ग़म की बात ही क्या, आसूं तो बहते
..............................................................
आसुंओं पर न जाओ,इनकी अलग सी दास्तां
**********************************

बड़ी मुद्द्त से चाह थी कोई दिलरुबा मिले
मिले भी तो सनम,बड़े ही वह  बेवफा  मिले
..............................................................
प्यार को असर अब दिल मे नासूर सा बसता
************************************
पेट की भूख सब से बड़ी बीमारी और लाचारी
धर्म,इमान कुच्छ भी नहीं बचे,पड़े सब से भारी
...............................................................
भूखे पेट भजन ना होये नन्दलाला
************************************
आजका मज़नू,भटकता हुआ भंवरा, कुच्छ आवारा,
कली-कली की चाहत,पर काँटों से उलझता बेचारा
.................................................................
परवाने जल जाते यों ही शमा के खातीर
**************************************

महबूब को पाकर, ख़ुशी मे ज़िन्दा थे बेमिसाल
उनको खोकर भी ज़िन्दा हैं लाश सारीका हाल
................................................................
उनको पाने को जीते थे,अब भी पाने को जीते हैं
*************************************
सजन कुमार मुरारका

माँ



सपनो मे , खयालो मे,
किस्सों मे, यादो मे,
देखा तुमने खुद को मुझ मे,
अपने हर उन लम्हों मे,
उन एक एक मुश्किल पलो मे,
उतारा मुझे इस जहाँ मे !

खुदा को लाख लाख शुक्र भेजें,
आँखे खोल कर जो देखा तुझें,
उसने भेजा तुम्हारी गोद में मुझे,
भेंट दिया, तुम्हारा ही हिस्सा तुम्हे,
एक नन्ही सी जान को प्राण सीचें,
तुम्हारे दिल का हिस्सा मिला मुझे !

एक नयी कहानी को जन्म दिया,
तुम्हारे ही नैन नक्श है दिया,
प्यार करना तुमने सिखाया,
जीवन का अर्थ समझाया,
दुनिया में आने से पहले बताया,
सारा संसार तुमने दिखाया !

परियों की कहानी सुनाये,
राजा के किस्से बताये,
खेल खेल में पाठ पढ़ाये,
जीवन के सारे रंग दिखाये
अपने हाथो से खाना खिलाये,
 हरबार कितना प्यार जताये !

सारे घर में पकड़म-पकड़ाइ,
जब निवाला मुह मे न डाल पाइ,
चोट मुझे लगने पर तेरी रुलाइ,
खून निकलने पर यों पथ्थराइ,
तुम्हारी आँखों ने वह बात बताइ,
जो शब्दों में कभी उतर ना पाइ,

क्या होती है माँ--!!
आज तक यह समझ ना आया,
रिश्ता बड़ा अजीब,गहरी दास्ताँ;
पता नहीं भगवान ने कैसे बनाया,
इतना दुःख दिया मैंने तुझे मेरी माँ;
सब सहा, और ख़ामोशी से निभाया !

मेरी सबसे अच्छी दोस्त बनी,
मेरा मार्गदर्शन हो;
हर डगर में सहारा तुम बनी,
जीवन का  हिस्सा हो;
मेरी उदासी तेरा दर्द बनी,
ममता से मजबूर  हो;

घड़ी दो घड़ी की बात नहीं यह,
जीवन भर का साथ है यह,
माँ, तुम्ही से सब कुछ है यह,
नहीं तो जीवन ही  व्यर्थ है यह,
कहकर कैसे समझाये यह,
हर इबादत से परे यह !!
सजन कुमार मुरारका

"त्रिशूल"......(प्रथम चरण )!!



श्री गुलजार जी की लिखी 'त्रिधारा' ये रचनाए पढ़ी। इस प्रकार की रचना मे तीन चरण होते है। पहले दो चरण एक साथ औए तीसरे चरण से एक नया अर्थ प्राप्त होता है। उनके प्रयास के साथ मुझें भी कुछ लिखने का मन हुवा ।शीर्षक है "त्रिशूल"......(प्रथम चरण )!!

दिल मे बस जाता कोई  जब
नशा इश्क का चढ़ता जब
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पाँव तब ज़मीन पर नहीं पड़ते
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दिन गुज़ारते उम्मीद से ,रातें गुज़रेगी ख्यालों मे
रातें नहीं गुजरती ख्यालों से,इंतज़ार के लम्हों मे

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उढ़ जाने को दिल चाहता  पंख लगा के
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चंपा -चमेली सी ख़ुश्बू से रातों को महकाये
मय -भरी आँख से  ,मिलन का संदेश जताये

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सम्भल ले सपेरा, नागीन कंही डसं न जाये
****************************उमड़ पड़ेअम्बर धरती की प्यास बुझाने
माटी भी महक उठी मिलन स्पर्श बताने

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,आया सावन झुमके ;आया सावन झुमके
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भीख के मिले पकवानों से अच्छी मेहनत की रोटी
वोटों की भीख मांग,फीट हो गई नेताजी की गोटी

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अब पछतायें क्या हो चिड़ियाँ ज़ब चुग गई खेत
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पत्थरों को तराश के बनती हसीन मूरत
दिल को तराश कर सजाई थी तेरी सूरत

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बेवफ़ाई मे खप गईं यादें,जैसे खड़ा ताज़महल
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निर्वाचन हमारे देश मे नाग-पंचमी का त्योहार है
दूध(वोट)हमको इन नागों(नेताओं)को पिलाना होगा
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जान-माल की हिफाज़त ख़ुद को करनी होती है
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सजन कुमार मुरारका