Powered By Blogger

Wednesday, May 5, 2010













पल
. . .


प्रिय ! तुम्हारे साथ के वह पल
या तुम्हारे बिना यह पल
दोनों पल, कैसे हैं ये पल ?
जला रहे हैं मुझे पल पल .
प्रिय ! तन्हाई के यह पल
या फिर मिलन के वह पल
पलक बिछाये बैठा हूँ हर पल ,
कैसे मिलेंगे फिर ये दोनों पल ?
प्रिय ! तुम याद करो वह पल
निश्चल पल में सचल नयनों के हलचल
में रोज याद करता हूँ यह पल
सचल पल में निश्चल नैनों की हलचल.
प्रिय ! यह बिरह का हर पल
या फिर मिलन का वह एक पल
पल में सिमट गया हैं अपना कल
कटे नहीं कट रहे हर एक पल !

No comments:

Post a Comment